काली कल्याणकारी!
महामारी कोरोना के कारण लोग भयवश कहते या पूछते दिखाई देते हैं कि क्या प्रलय आ गयी है। प्रलय क्या है यह कितने प्रकार की होती है और ज्योतिष के अनुसार प्रलय किसे कहते हैं आइये जानते हैं हमारे इस आर्टिकल में-
प्रलय क्या है?
आमतौर पर प्रलय से तात्पर्य निकाला जाता है महाविनाश या बहुत बड़ी जनहानि से। लेकिन प्रलय का वास्तविक अर्थ है प्रकृति से लय होना। इसे प्रायः प्रकृति में लय हो जाना या समाप्त हो जाना समझा जाता है लेकिन जब आप इसे बड़े रूप में समझने का प्रयास करते हैं तो पाते हैं कि प्रकृति की अपनी एक लय है और उस लय को नियमित करने हेतु समय समय पर प्रलय आती है यह बात आगे की अन्य बातों से और भी स्पष्ट हो जाएगी।
ज्योतिष के अनुसार प्रलय का अर्थ
सिद्धांत ज्योतिष के ग्रंथों में प्रलय, कालमापन की सबसे बड़ी इकाई है। काल यानी समय जिसे आजकल हम सेकंड, मिनट, घंटे दिन आदि में मापते हैं ज्योतिष में पल, घटी, मुहुर्त, अहोरात्र, पक्ष, मास, अयन, वर्ष, संवत्सर, युग, मन्वंतर, महायुग, प्रलय इत्यादि इकाइयों में समय की गणना की जाती है।
ज्योतिष में काल की सबसे छोटी इकाई त्रुटि कही जाती है जिससे तात्पर्य है कि किसी कमल के पुष्प को किसी सुई से छेदने में जितना समय लगता है उसे त्रुटि तुल्य माना जाता है। सेकंड में अगर एक त्रुटि के मान को लिखा जाए तो यह लगभग 0.0000296 सेकंड अर्थात अत्यन्त ही सूक्ष्म समय है। इसी काल की सबसे बड़ी इकाई प्रलय कही जाती है ज्योतिष और धर्म ग्रंथों के जानकार जानते हैं कि प्रलय प्रकृति की एक आवश्यक क्रिया है क्योंकि इसके बिना काल का पुनः चक्रण सम्भव ही नहीं है।
प्रलय के प्रकार और मान-
पुराणों और ज्योतिषीय ग्रंथों में प्रलय के चार प्रकार कहे गए हैं और ये हैं नित्य प्रलय, आत्यंतिक प्रलय, ब्रह्मलय या नैमित्तिक प्रलय और महाप्रलय।
1. नित्य प्रलय
जीव जंतुओं का होने वाला दिन-प्रतिदिन का मरण अथवा नाश नित्य प्रलय कहलाता है। जिसने जन्म लिया है उसका पूरण भी होना है अर्थात उसका मरण भी होना है। यदि मरण नहीं होगा तो पुनर्जन्म कैसे होगा। प्रकृति समय समय पर अपनी वहन क्षमता बढ़ने अथवा घटने के अनुसार नित्य प्रलय की तीव्रता घटाती बढ़ाती रहती है। तीव्रता का वेग अधिक होने पर कई बार कुछ जीवों की सम्पूर्ण जाति ही समाप्त हो जाती है क्योंकि वे प्रकॄति की वहन क्षमता को पार कर चुके होते हैं। डायनासोर का विलुप्तिकरण इसका एक उदाहरण है अगर डायनासोर पृथ्वी से नहीं गायब हुए होते तो मानवजाति पृथ्वी पर यूँ न राज कर रही होती। यही प्रकृति डायनासोरों के लिए निष्ठुर और हमारे लिए हितैषी सिद्ध प्रतीत होती है लेकिन प्रकृति निष्पक्षता से अपना चक्र चलती है। वह अपने संसाधनों के पुनः चक्रण के लिए नित्य प्रलय रचती है। अतः यह हमपर है कि हम अर्थात सम्पूर्ण मानवजाति यदि लंबे समय तक जीवित रहना चाहती है तो प्रकृति की वहन क्षमता को पार न करें अन्यथा हमें भी लुप्त होना पड़ेगा।
वर्तमान में फैली महामारी इसी नित्य प्रलय की सामान्य तीव्रता है जिसमें वे लोग अपने जीवन से जा रहे हैं जिन्होंने अपने शरीर की वहन क्षमता को पार कर दिया था। ध्यान रहे जब हम प्रकृति की बात करते हैं तो वह मात्र वातावरण या प्राकृतिक परिवेश की बात नहीं होती बल्कि वह परमाणुओं से भी सूक्ष्म कणों से लेकर वृहद ब्रह्मांड के कार्य करने की सृष्टि की प्रकृति की बात होती है।
नित्य प्रलय का मान व्यक्ति के लिए उसकी आयु, प्राकृतिक संसाधनों के लिए उनका भंडारण और दोहन आदि से जाना जा सकता है। नित्य प्रलय पृथ्वी के भीतर चलने वाली सामान्य प्रलय है, इसमें पूरी पृथ्वी नष्ट नहीं होती है।
नित्य प्रलय का मान त्रुटि से लेकर महायुग तक कुछ भी हो सकता है।
आगे के तीन प्रकारों के संक्षिप्त वर्णन से आप प्रकॄति और प्रलय को और अच्छे से समझ जाएंगें।
2. ब्रह्मलय या नैमित्तिक प्रलय-
यह प्रलय ज्योतिष में समय की सबसे बड़ी इकाई है क्योंकि इस प्रलय के बाद समस्त ग्रहों समेत पृथ्वी आदि का नाश हो जाता है और ज्योतिष की गणना ग्रहों पर ही आधारित है लेकिन यहाँ यह ध्यान रखें कि यह भी सबसे बड़ी प्रलय नहीं है। ऐसा माना जाता है कि इस प्रलय में पृथ्वी, सूर्य समेत सभी ग्रह आदि, व्यक्त ब्रह्म के शरीर में समाहित हो जाते हैं अर्थात वे अपनी आयु पूर्ण कर पुनः जन्म लेने हेतु ब्रह्म में लय हो जाते हैं। इस प्रलय का मान एक हजार महायुग या एक कल्प होता है अर्थात जब एक कल्प पूरा होता है तो यह प्रलय होती है।
एक महायुग से तात्पर्य है चार युगों सतयुग त्रेता द्वापर कलयुग का योग और ऐसे 1000 महायुगों को एक कल्प कहा जाता है और यह एक कल्प ब्रह्म का एक दिन (रात्रि नहीं) होता है। कहने का मतलब ब्रह्म के सूर्योदय से सूर्यास्त तक का समय एक कल्प तुल्य होता है। ब्रह्म के एक अहोरात्र (दिन और रात का मान) दो कल्प तुल्य होता है।
3. महाप्रलय
महाप्रलय सबसे बड़ी प्रलय है इसमें सम्पूर्ण व्यक्त ब्रह्मांड व्यक्त ब्रह्न सहित अव्यक्त ब्रह्म में लीन हो जाता है। जिस जिस क्रम में जो तत्व प्रकट हुए थे उसके ठीक विपरीत क्रम में वे तत्व विलीन हो जाते हैं।
इस प्रलय का मान ब्रह्म की आयु के तुल्य होता है। ब्रह्म की आयु 100 ब्रह्मवर्ष मानी गई है। एक ब्रह्मवर्ष में 720 कल्प होते हैं।
4. आत्यंतिक प्रलय
छोटी प्रलय और बड़ी प्रलय जानने के बाद अब जिज्ञासा उठना स्वाभाविक है कि यह कौन सी प्रलय है?
इस प्रलय से अर्थ है ज्ञान के बल पर ब्रह्म से लय में हो जाना अर्थात योगियों द्वारा ब्रह्म ज्ञान को जान जाना और जन्म मरण के इस चक्र से निकल जाना। इसे ही मोक्ष कहा जाता है।
इस प्रलय का मान योगी की आयु न होकर उसके भीतर ब्रह्मज्ञान स्थिर होने का समय होता है क्योंकि ब्रह्म में लीन हो जाने के बाद इस ज्ञान का भी लोप हो जाता है। इस प्रलय द्वारा योगी ब्रह्मा के अगले दिवस के सूर्योदय तक मोक्ष अवस्था में रहता है उसके पश्चात नये कल्प में वह पुनः अवतरित होता है। बुद्ध , परमहँस जैसे ऐसे ही योगी हुए हैं।
संक्षेप में
प्रलय काल की बड़ी इकाई है प्रकृति यानी सृष्टि की वहन क्षमता का नियम छोटी से छोटी वस्तु से लेकर ब्रह्म तक सबपर लागू होता है। पृथ्वी और अपने सौरमंडल की बात करें तो पृथ्वी के तत्वों और ऊर्जाओं को और सौरमंडल के अनेक ग्रहों से प्रभावित पृथ्वी के तत्वों और ऊर्जाओं की वहन क्षमता को संतुलित करने के लिए ज्योतिष विद्वान तरह तरह के मंत्र, रत्न, जीवों की सेवा अर्थात संरक्षण, प्राकृतिक संसाधनों की पूजा आदि द्वारा उनका संरक्षण और कुछ विशेष पदार्थ बहाने जलाने मिट्टी में दबाने आदि के उपाय बताते हैं। ज्योतिष इन्हीं तत्वों और ऊर्जाओं को संतुलित करने और प्रलय के नियमों के अनुसार मानवजाति को ढालने का विज्ञान है।
शेष काली इच्छा!
Bhut achhi jaankari prapt hui is article me…Thanks sir