काली कल्याणकारी!
शनि जयंती (22 मई 2020) के अवसर पर उन लोगों के लिए सरल किंतु दो बहुत ही विशेष उपाय बता रहे हैं जिन्हें कोई असाध्य रोग है या रोग का कारण न पता चलता हो, जिनके विवाह में बाधा है, शत्रुओं से परेशानी, कारोबार या नौकरी में अनचाही समस्याएं हैं, संतान की बाधा या समस्या है,पति पत्नी में अलगाव है, जीवन पर कोई संकट है या अल्पायु हैं, लिखने पढ़ने बोलने में एकाग्रता की कमी है, चलने फिरने में असक्षम हैं, मकान वाहन ज़मीन तथा संपत्ति से जुड़ी समस्याएं हों, कर्ज़ उतरता न हो या दिया गया पैसा वापस न मिलता हो या आध्यात्मिक उन्नति न होती हो या साधना में बाधा आती हो या जो शनि की साढ़ेसाती और ढैया के कारण किसी भी तरह के चैन और सुकून को तरस गये हों और मानसिक, शारीरिक और आर्थिक कष्टों से बहुत परेशान हों।
ज्येष्ठ अमावस्या शनि की कृपा प्राप्त करने के लिए सर्वोत्तम तिथियों में से एक है इस दिन शनि के जन्म की मान्यता है। इसी दिन भारत के कुछ प्रान्तों में वट सावित्री व्रत मनाने की भी परम्परा है। आज हम आपको दो उपाय बताने जा रहे हैं जो सभी राशि और लग्न के किसी भी आयु वर्ग के स्त्री तथा पुरुष दोनों निसंकोच रूप से कर सकते हैं।
पूजन सामग्री-
एक छोटी सी मटकी, सवा सौ ग्राम काली उड़द की दाल , मटकी को पूरा ढककर उसे बांधने में जितना कपड़ा लगे उतना एक गहरे नीले या काले रंग का कपड़ा, 50ml सरसों का तेल, एक या दो रुपये के 12 सिक्के, लोहे की एक छोटी कील, लंबा सफेद धागा और थोड़ी सी पिसी हल्दी। ध्यान रहे कि आपको शनिदेव का कोई चित्र, प्रतिमा आदि का प्रयोग इसमें नहीं करना है। पूजन सामग्री किसी भी दिन ले सकते हैं।
पूजन विधि-
चाहे आप स्त्री हों या पुरुष इससे इस पूजन में कोई अंतर नहीं है और नीचे बताए गए दोनो उपाय करना जरूरी है-
पहला उपाय-
22 मई की सुबह आपको स्नान करके भगवान सूर्य को जल देना है अगर उगते सूर्य को जल नहीं दे पाते हैं तो कोई बात नहीं फिर जल नहीं देना है, जब भी आप स्नान करें उसके बाद सीधे सूर्य भगवान के दर्शन करें और धूप में अपना आसन लगाकर उसपर बैठ जाएं।
अब पिसी हल्दी में जल मिलाकर उसका घोल बना लें, अगर गंगाजल हो तो सर्वोत्तम अन्यथा कोई भी जल उत्तम है इसी हल्दी के घोल को सफेद धागे पर चढ़ाकर धागे को पीला कर लें और पीला होने के बाद धागे को अपने दाहिने हाथ की कलाई पर आठ (8) बार घुमाकर बाँध लेना है (किसी अन्य की सहायता से करें) हर फेरे के साथ आपको मन्त्र बोलना है ‘ॐसूर्याय नमः।’
धागा बंधने और मंत्र बोलने के बाद आपको अपनी वह समस्या जिससे आप छुटकारा चाहते हैं या कोई मनोकामना जो आप चाहते हैं कि पूरी हो जाये उसका अपने मन में ध्यान करना है (आप चाहें तो अपने अलावा अपने किसी प्रिय के नाम से भी उसके लिए यह उपाय कर सकते हैं बस अपनी जगह उनका नाम लेना होगा) और सूर्य को प्रणाम कर अपने आसन से उठ जाना है।
बचा हुआ धागा और हल्दी अपने पूजन स्थल पर रख लें और अपना नित्य प्रतिदिन का जो पूजन आप करते हैं वो करें। पहला उपाय यहाँ सम्पूर्ण होता है।
ध्यान दें- स्त्री अथवा पुरुष सभी को धागे को दाहिने हाथ में ही बाँधना है और यह काम धूप में आसन पर बैठकर ही करना है।
दूसरा उपाय-
यह उपाय आप 22 मई के सूर्यास्त के बाद से 22 मई की रात्रि 11 बजे के मध्य में कभी भी कर सकते हैं बस इतना ध्यान रखना है कि आपकी पूरी विधि 22 मई की रात्रि 11 बजे तक पूर्ण हो जानी चाहिए इसी के साथ यह भी ध्यान रखना है कि सूर्यास्त के बाद ही इसे आरम्भ करना है पहले नहीं।
1.अपने पूजन स्थल पर देसी घी का एकमुखी दीपक जलाएं और चंदन अथवा धूपबत्ती से सुगंध करें।
2. अपने आसन को बिछा कर बैठ जाएं और काले अथवा गहरे नीले कपड़े को अपने आसन के सामने यूँ बिछाएं कि वह आपके और दीपक के मध्य में रहे और आपका हाथ आराम से काले कपड़े तक पहुँच सके।
3. अब धुली हुई साफ मटकी लें और मटकी के बाहर के पूरे हिस्से को सुबह के बचे हुए हल्दी के घोल से पोत दें। उसके बाद मटकी को काले अथवा गहरे नीले कपड़े के बीचोबीच स्थापित कर दें।
4. अब मटकी में सबसे पहले एक एक सिक्के को प्रणाम करते हुए 12 सिक्के रख देंगें, और आखिरी सिक्का रखने के बाद भगवान शिव का ध्यान करते हुए उनका मंत्र ॐ नमः शिवाय एक माला (रुद्राक्ष की) जपें। जप के बाद भगवान शिव से प्रार्थना करें कि हे प्रभु हमारा ये मनोरथ पूर्ण करें।
5. उसके बाद मटकी में पहले से रखे सिक्कों पर सवा सौ ग्राम काली उड़द की दाल और फिर 50 ml सरसों का तेल डाल दें और शनिदेव का ध्यान करते हुए उन्हें मानसिक प्रणाम करें और उसके बाद यह मंत्र एक माला जपें-
ऊँ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्।
छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्।।
जप के बाद शनिदेव से अब अपनी वह एक प्रमुख समस्या दूर करने या अपनी कोई एक मनोकामना पूर्ण करने का निवेदन करें जो आपने सुबह सूर्य के सामने की थी, अगर किसी और के लिए यह उपाय कर रहे हों तो उसका नाम लेकर समस्या या मनोकामना कहें।
6. उसके बाद मटकी के मुँह समेत पूरी मटकी को उसी काले या गहरे नीले कपड़े से बाँध दें जिसपर वह रखी हुई थी।
7. मटकी को अच्छी तरह बाँधने के बाद उसी स्थान पर मटकी को वापस रख दें और सुबह के बचे हुए पीले धागे की सहायता से लोहे की कील को मटकी की गर्दन पर अच्छी तरह बाँध दें और माँ काली का ध्यान करते हुए एक माला यह मंत्र जपें ‘ॐ क्लीं कालिकायै नमः’ जप पूरा हो जाने पर माँ काली से प्रार्थना करें कि वे शनिदेव को आज्ञा दें कि वे हमारा मनोरथ पूर्ण करें। उसके बाद भगवान शिव शनिदेव और माँ काली को मानसिक प्रणाम कर अपनी भूल चूक की क्षमा माँगें और आसन से उठ जाएं और मटकी को उठा लें।
8. अब मटकी को अपने घर की पश्चिम दिशा में किसी ऊँची जगह रख दें और 5 जून ज्येष्ठ पूर्णिमा तक रखा रहने दें 5 जून के सूर्यास्त के ठीक बाद मटकी और अपने हाथ के बँधे धागे को किसी निर्जन जगह छोड़ आएं। मटकी जैसी रखी थी वैसी ही छोड़ आनी है उसे खोलना नहीं है हाथ के धागे को उतार कर छोड़ आना है।
शेष काली इच्छा!
~आचार्य तुषारापात
(ज्योतिष डॉक्टर)
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