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काली कल्याणकारी!
राखी बाँधने का सर्वोत्तम शुभ मुहूर्त, भद्रा का समय व रक्षाबंधन से जुड़े पूजन, मनाए जाने का कारण और रक्षासूत्र के महत्त्व को जानिए-

रक्षाबंधन मनाए जाने का कारण व महत्त्व-

श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि पर रक्षाबंधन पर्व मनाया जाता है आधुनिक काल में यह दिवस भाई-बहन से जुड़े एक त्यौहार तक सीमित हो गया है परन्तु वैदिक काल में यह दिन विशेष तौर पर मानव के लिए प्रतिकूल प्रकृति की उन रहस्यमय परिस्थितियों जिन्हें हम सामान्यतः बुरी बलायें, भूत-प्रेत, पिशाच आदि कह देते हैं, से पूरे वर्ष जागरूक रहने की एक प्रतीकात्मक प्रक्रिया थी। इसीलिए एक कथा प्राचीन काल में प्रचलित थी जिसके अनुसार इंद्र की पत्नी ने अपने पति की दानवों से रक्षा के लिए वज्र को रक्षासूत्र बाँधकर, पूजन किया था तभी से यह दिवस विजय, सौभाग्य धन-संपदा, स्त्री, स्वास्थ्य आदि के लिए सतर्कता बरतने और चौकन्ना रहने के लिए मनाया जाने लगा जो कालांतर में कई राजनैतिक और सामाजिक परिस्थितियों के कारण बहन की रक्षा तक मुख्य रूप से सीमित हो गया।
पूर्णिमा तिथि और भद्रा का समय-
इस वर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा 2 अगस्त की रात्रि लगभग 9 बजकर 28 मिनट से आरम्भ होगी और 3 अगस्त की रात्रि 9 बजकर 28 मिनट तक रहेगी। इस कारण यह पर्व 3 अगस्त को मनाया जाएगा परन्तु 3 अगस्त के पूर्वार्ध में भद्रा (विष्टि करण) पूर्वाह्न के लगभग 9 बजकर 27 मिनट तक रहेगी। भद्रा के दौरान राखी नहीं बाँधनी चाहिए अतः 3 अगस्त को सुबह 9 बजकर 28 मिनट से लेकर रात्रि के 9 बजकर 01 मिनट के मध्य में ही राखी बाँधने का कार्यक्रम सभी को करना चाहिए।
राखी बाँधने का सर्वोत्तम शुभ मुहूर्त-
राखी बाँधने का सर्वोत्तम शुभ समय 3 अगस्त 2020 को अपराह्न 1:31 से साँय 4:12 के मध्य का है यदि संभव हो तो सभी बहनों को इसी समय के मध्य अपने भाइयों को राखी बाँधनी चाहिए, इसके बाद साँय 6:54 से रात्रि 9:01 तक का समय भी उत्तम शुभ फल देने वाला है इस समयखंड में भी राखी बाँधी जा सकती है।
रक्षाबंधन पूजन विधि-

जैसा कि ऊपर बताया था कि यह दिवस बुरी बलाओं, आसुरी शक्तियों और अनजानी बाधाओं के प्रति सतर्कता का दिवस है इसलिए इस दिन के पूजन के सभी कार्य दोपहर में करना सबसे अच्छा रहता है क्योंकि दोपहर के समय सूर्य सबसे अधिक प्रभावी होते हैं और आसुरिक शक्तियाँ सबसे क्षीण होती हैं।
रक्षाबंधन के सर्वोत्तम शुभ परिणामों को प्राप्त करने के लिए आदर्श पूजन विधि समय के साथ बता रहा हूँ किसी कारण से इन समय पर यदि आप न कर पाएं तो उस समय के जितना आसपास हो सके करना चाहिए-
1. राखी पूजन के लिए 3 अगस्त को दोपहर 1:31 पर सर्वप्रथम पीपल के वृक्ष को जल अर्पित करें। पीपल का वृक्ष न हो तो अपने घर में दक्षिण दिशा की ओर छत बालकनी इत्यादि से अपने पितरों को जल दें।
2. उसके पश्चात घर या बाहर कहीं की भी कच्ची भूमि को अर्थात मुठ्ठी के आकार भर की मिट्टी की जगह को साफ कर लें उस स्थान पर रोली से तिलक लगाएं, दो रक्षासूत्र (सामान्य पीले धागे जो राखी के स्थान पर मिलते हैं) चढ़ाएं मिठाई का एक टुकड़ा उस स्थान पर चढ़ाएं और अंत में थोड़ा सा जल चढ़ाकर धरती माँ को अपनी रक्षा करने के लिए कहें और उस स्थान को प्रणाम कर वापस अपने पूजन स्थल पर आ जाएं।
3. अपने पूजन स्थल पर सामान्य पूजन के उपरांत सभी भगवान की मूर्तियों को रोली का तिलक लगाएं, एक एक रक्षासूत्र अर्पित करें, मिठाई खिलाएं और जल अर्पित करें और प्रणाम कर सबको अपनी, अपने परिवार और अपने राष्ट्र की रक्षा करने की प्रार्थना करें।
4. उसके पश्चात अपने वाहन, घर के मुख्य दरवाजे, धन रखने वाली अलमारी इत्यादि और स्वयं को एक एक रक्षासूत्र अवश्य बाँधें।
5. ऊपर बताए सभी कार्य करने के बाद अपने घर में भाइयों इत्यादि को राखी बांधने का कार्यक्रम अपने परिवार के रीतिरिवाजों के अनुसार करें। यह ध्यान रखें कि धरती माँ, ईश्वर को तिलक लगाने वाली थाली से ही अपने घर में राखी बंधवाने वालों का तिलक करवाएं अर्थात एक ही थाली जिसमें रोली, मिठाई रक्षासूत्र राखी इत्यादि हो सभी के पूजन के लिए प्रयोग में लायी जाए।
ऊपर बताए गए सभी उपाय परिवार का कोई भी एक सदस्य कर सकता है ये आवश्यक नहीं है कि बहन या भाई ही करे। यदि सब कार्य संभव न हों तो परेशान न हों सामान्य राखी बांधने/बंधवाने का कार्यक्रम बताए गए शुभ मुहूर्त पर करें। माँ सबकी रक्षा कर रही है।
विशेष टिप- इस दिन यदि आप अपने गुरु अथवा गुरु तुल्य व्यक्ति को रक्षासूत्र बाँध दें या वे दूर हों तो उनके नाम से रक्षासूत्र अपने पूजन स्थल में रख दें तो उनकी अद्भुत कृपा आपको अवश्य ही प्राप्त होगी।
 शेष काली इच्छा!

~आचार्य तुषारापात
 (ज्योतिष डॉक्टर)

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