काली कल्याणकारी!
जब कभी भी कुंडली के दुर्योगों का सामान्यतः वर्णन किया जाता है तो दुर्योगों में ‘कालसर्प योग’ का वर्णन प्रमुखता से किया जाता है और इस योग से जातक को इतना भयभीत करा दिया जाता है कि वह बड़े बड़े अनुष्ठानों के चक्कर में पड़कर अपने धन और समय की हानि तो करता ही है साथ ही उसके जीवन की मूल समस्या का निदान भी उसे प्राप्त नहीं हो पाता है।
कालसर्प योग किसे कहते हैं? कालसर्प योग क्या है? कालसर्प योग कैसे बनता है?
कालसर्प योग का निर्माण तब होता है जब किसी जन्मकुंडली में राहु और केतु के मध्य अन्य सभी ग्रह स्थित हो जाएं, राहु केतु की द्वादश भावों में विभिन्न स्थितियों के अनुसार कालसर्पदोष विभिन्न प्रकार के होते हैं।
वैदिक ज्योतिष में कालसर्प योग अथवा कालसर्पदोष-
वैदिक ज्योतिष के प्राचीन प्रामाणिक ग्रंथो में कालसर्प दोष अथवा कालसर्प योग का कोई वर्णन प्राप्त नहीं होता है किंतु आधुनिक मत के अनुसार इसे बहुत ही हानिकारक माना जाता है और इसकी शांति पर विशेष बल दिया जाता है।
कालसर्प योग अथवा कालसर्प दोष के लक्षण या प्रभाव क्या होते हैं?
कालसर्प योग या कालसर्प दोष से पीड़ित जातक के जीवन में मानसिक अशांति, संतान की बाधा, धन और आजीविका की समस्या, कर्ज़ की समस्या, गृहस्थी में कलह, परिवार में कलह, बुरे स्वप्न आना, ऊपरी बाधाओं का प्रकोप, असाध्य या न पकड़ में आने वाले रोगों का हो जाना, प्रतिष्ठा की हानि होना या प्रतिष्ठा की प्राप्ति न होना, जातक को अपने कर्मों का उचित प्रतिफल नहीं प्राप्त होना, किसी भी महत्त्वपूर्ण कार्य में बाधा या अड़ंगा लग जाना, कार्य देर से सफल होना ,नौकरी या व्यापार में समस्या ही होना और पूरे जीवन भर सदैव संघर्ष ही करते रहना आदि ये लक्षण कहे या बताये जाते हैं।
कालसर्प योग क्या वाकई में हानिकारक है? कालसर्प योग की सच्चाई क्या है?
चूँकि वैदिक ज्योतिष में कालसर्प योग का कोई उल्लेख प्राप्त नहीं होता है इसलिये वैदिक रीति से कुंडली बाँचने वाले विद्वान इस दोष को कोई मान्यता नहीं देते हैं किंतु आधुनिक मत के कई विद्वान इसे अत्यन्त कष्ट देने वाले योगों में से एक मानते हैं तो ऐसे में प्रश्न उठता है जातक किसकी बात को सत्य माने?
यह एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण विषय है अतः इसे ध्यान से समझ लें तो आप इस काल सर्प योग की मार्केटिंग में नहीं उलझेंगे।
वास्तव में कालसर्प योग के कारण जातक के जीवन में होने वाले ऊपर बताये गये जो भी कष्ट बताये जाते हैं उनका कारण राहु-केतु के मध्य सभी ग्रहों का स्थित होना न होकर वरन राहु और केतु जैसे पीड़ा देने वाले ग्रहों का जातक की कुंडली के भावों में स्थित होना है अलग अलग लग्न के अलग अलग 12 भावों में जहाँ जहाँ राहु या केतु स्थित होते हैं वहाँ वहाँ वे अपनी स्थिति, दृष्टि या युति के अनुसार बुरे या अच्छे फल देते हैं। इसके लिये आवश्यक है कि किसी योग्य ज्योतिषी से परामर्श लेकर अपने लग्न में राहु या केतु की बुरी स्थिति के उपाय किये जायें न कि कालसर्पदोष के उपाय। यही कारण है कि कालसर्प योग के सामान्य उपाय जो सभी जातकों के लिये प्रायः एक समान होते हैं उतने कारगर सिद्ध नहीं होते क्योंकि राहु केतु की स्थिति हर लग्न में अलग अलग होती है उनके फल भी अलग अलग होते हैं।
आगामी 13 अगस्त को पढ़ने वाली महत्त्वपूर्ण तिथि नागपंचमी के लिये हम एक सामान्य सा उपाय सभी लग्नों के व्यक्तियों के लिये बता रहे हैं जिससे उनके जीवन के ऊपर बताये गये सभी कष्टों में 70 प्रतिशत तक कमी आ सकती है शेष प्रत्येक कुंडली के अनुसार अलग अलग विशेष उपाय होते हैं और वह इस लेख में किसी प्रकार सम्भव नहीं है वह तो प्रत्येक की कुंडली देखकर ही बताये जा सकते हैं।
13 अगस्त नागपंचमी का कालसर्प दोष में वर्णित बुरे लक्षणों को दूर करने का उपाय-
यह उपाय सभी राशि/लग्न के सभी स्त्री पुरुष 13 अगस्त नागपंचमी पर सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक कभी भी कर सकते हैं चाहे उनकी कुंडली में कालसर्पदोष हो अथवा नहीं। यदि आपके जीवन में ऊपर बताये गये कष्ट हैं तो ये उपाय आपके लिये है-
13 अगस्त नागपंचमी के दिन आप अपने दैनिक पूजन के बाद इस उपाय को करें इसके लिये आपको 5 सिक्के (1 या 2 रुपये) लेकर उन पाँचो सिक्कों को अलग अलग सफेद चंदन (चाहे घिसकर या चाहे चंदन पाउडर को गीला करके) से पूरा ढक देना है अर्थात पाँचो सिक्कों पर दोनों तरफ अच्छी तरह से चंदन का लेप लगाना है और उन्हें अपने सामने पूजन स्थल पर रख लेना है उसके बाद भगवान शिव का ध्यान कर 11 बार ॐ नमः शिवाय इस मंत्र को जपना है। उसके बाद भगवान शिव से अपने जीवन के कष्टों को दूर करने की प्रार्थना करनी है।
प्रार्थना के बाद 5 सिक्कों में से एक सिक्के को अपने पूजन स्थल पर छोड़ देना है और 4 सिक्के आपको उठा लेने हैं और अपनी सुविधा अनुसार दिन के किसी भी समय उन 4 सिक्कों में से एक सिक्के को किसी शिव मंदिर में शिवलिंग पर अर्पित करना है, दूसरे सिक्के को किसी भी कच्ची ज़मीन में दबा देना है, तीसरे सिक्के को किसी भी बहते हुये जल में बहा देना है और चौथे सिक्के को हवा में उछाल देना है। ध्यान रहे कि एक सिक्का जो आपने घर में छोड़ा है उसे अगले एक वर्ष तक अपने पूजन स्थल पे रखा रहने देना है और जो 4 सिक्के आपने उठाये हैं उनमें से एक सिक्के को सबसे पहले शिवलिंग पर चढ़ाना है शेष आगे सिक्कों को दबाने बहाने का कार्य किसी भी क्रम में आप कर सकते हैं।
यह सिद्ध उपाय करें आपको अवश्य लाभ होगा।
शेष काली इच्छा!
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विशेष दिन शुभ दिन पर यह सरल उपाय सबके करने योग्य।
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महादेव सबका कल्याण करें