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कल प्रधानमंत्री के आवाह्न पर कुछ लोगों द्वारा जुलूस या सामूहिक घंटनाद एवं शंखनाद के उपरान्त
यह आवश्यक है कि आगामी नवरात्रि पर आप इन बातों को समझकर पूजन करें।

क्या आप प्रसाद में मिले फल के छिलके भी खा जाते हैं?
हमारे प्राचीन ऋषि-मुनि, संत आदि समाज सुधारक थे उनके द्वारा स्थापित परम्पराएं पूर्णतः वैज्ञानिक थीं लेकिन क्या हम उस वैज्ञानिकता का सम्मान करते हैं?
साँप निकल जाने के बाद बनी लकीर को पीटते जाने जैसे आचरण क्या उनके ज्ञान का,उनकी बरसों की साधना का अपमान नहीं?
किसी पर्व के पीछे की वैज्ञानिकता को पीछे छोड़ के मात्र विश्वास दिखाना अंधविश्वास कहलाता है।

वासंतिक और शारदीय नवरात्र दोनों पर्व, गोल संधियों में सूर्य के आगमन पर मनाए जाते हैं
(उत्तर गोल=मेष से कन्या तक, दक्षिणगोल= तुला से मीन तक)
सोचिए जब आज इतनी उन्नत मेडिकल साइंस होने के बावजूद कोरोना जैसी विषाणुजनित महामारी से लड़ना कठिन है तो
आज से हजारों पूर्व जब इतनी सूक्ष्म टेस्टिंग और एंटीबायोटिक दवाइयाँ नहीं थीं तब ऋतु परिवर्तन की इन दोनों संधियों में कोई छोटे से बैकेट्रियल इंफेक्शन से भी कितनी बड़ी जनहानि हो जाती होगी इसीलिए नवरात्रि में आहार विहार के नियम बनाये गए जिन्हें हम व्रत कहते हैं, ऐसी वस्तुओं को अग्नि में जलाने का प्रचलन हुआ जिनसे वातावरण में व्याप्त कीटाणुओं का अंत हो कौन सी वस्तु किस मात्रा में और किस क्रम में अग्नि को समर्पित की जाए इसी नियमावली का नाम हवन है। इसी तरह पूजन में दीप प्रज्ज्वलन और मंत्र जप आदि से हमारे शरीर में ही ऐसी ऊर्जा उत्पन्न हो जाती है जो कि हमें ऐसे इंफेक्शन से बचाती है जिसे आजकल हम इम्युनिटी के नाम से जानते हैं यह एक व्यापक शब्द है इसे ही प्राचीन काल में दैवीय ऊर्जा कहा जाता था और जनहानि के लिए उत्तरदायी ऊर्जाओं को आसुरिक शक्तियाँ कहा जाता था।

देवस्थानों, देवालयों या मंदिरों में भी ऊर्जा का नियम लागू होता है भवन तथा मूर्ति के वास्तु द्वारा भौगोलिके स्थिति अनुसार वह स्थान,भवन, अथवा मूर्ति सकारात्मक ऊर्जा से भर जाती है परन्तु इसकी भी एक सीमा है जिसे आजके आधुनिक समय में कैरिंग कैपेसिटी के नाम से जाना जाता है। पूर्व समय में जनसंख्या कम होने से एक समय में कम संख्या में मनुष्य इन देवस्थानों में जाते थे तो उन्हें उस ऊर्जा का प्रचुर लाभ प्राप्त होता था परन्तु आज आवश्यकता से अधिक भीड़ के रूप में जाने पर उस ऊर्जा का लाभ नहीं मिल पाता ये कुछ ऐसा ही है जैसे कि अगर आपके पास 100 GB डेटा है और सिर्फ आप ही उसका प्रयोग करते हैं तो वो शायद एक महीने चलेगा लेकिन यदि 100 लोग उसी डेटा का प्रयोग करेंगें तो वह एक दिन में समाप्त हो जाएगा और आपको वह डेटा फिर से रिचार्च कराना होगा, यहाँ यह भी ध्यान रखें कि प्राकृतिक ऊर्जाएं रिचार्च होने में अपना समय लेतीं हैं।

सामान्य दिनों में आप मंदिर जाएं कोई समस्या नहीं है लेकिन बंधुओं इस समय संक्रामक विषाणु जनित महामारी कोरोना को देखते हुए आप किसी मंदिर, मंडप,भजन मंडली,जलसा, जुलूस, बैठक, प्रसाद वितरण समारोह, जागरण, आश्रम भ्रमण आदि का न तो आयोजन करें न ऐसे किसी कार्यक्रम में शामिल हों बल्कि दूसरों को भी ऐसा करने से रोकें, आप अपने घर में ही नवरात्रि का पूजन करें,यकीन मानिए आपको प्राप्त होने वाले पुण्य फलों में कोई अंतर नहीं होगा।

पूजन में भी कोई आडम्बर की आवश्यकता नहीं यदि संभव हो तो बस घी अथवा तेल से गोल अथवा लंबी बाती का एक दीपक जलाएं, मस्तक पर केसर, हल्दी अथवा चंदन का तिलक लगाएं और अपने इष्टदेव अथवा माँ का कोई भी मंत्र (ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे ) एक निश्चित संख्या (कम से तीन माला 3×108) में नवरात्रि के इन नौ दिनों में सभी संधिकालों अर्थात सुबह दोपहर,शाम मध्यरात्रि में से किसी भी समय जप सकते हैं, परिवार के सभी सदस्य मंत्र जप सकते हैं लेकिन एक साथ न बैठें अलग अलग स्थान पर या अलग अलग समय का चुनाव कर मंत्र जपें। जिनके यहाँ कलश स्थापना आदि की परंपरा चली आ रही है वे यदि आजकी परिस्थिति में संभव हो तभी कलश इत्यादि स्थापित करें अन्यथा ऊपर बताई गई विधि ही पर्याप्त है। कलश स्थापना के लिए सबसे शुभ मुहूर्त- 25 मार्च की सुबह 6 बजकर 8 मिनट से सुबह के 7 बजकर 7 मिनट तक का है। 25 मार्च का पूर्वाह्न काल (सूर्योदय से लेकर मध्याह्न तक) भी समय अच्छा है।

देवताओं तक को दुर्लभ आपका यह मानव शरीर ही मंदिर है इसके हृदयरूपी गर्भगृह में माँ के स्वरूप को स्थापित करें और मन्त्र जप से आदिशक्ति की प्राण-प्रतिष्ठा कर ब्रह्मांड की शक्ति को स्वयं में जागृत करें और स्वयं को अपने परिवार को और समाज को सबका कल्याण करने वाली ऊर्जा से भरकर कोटि कोटि पुण्यफलों को प्राप्त करें।

शेष काली इच्छा!

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